बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
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विभिन्न रोगों में पोषण की आवश्यकता
(Nutrition Requirement in Various Diseases)
पाठ्य सामग्री
मधुमेह (Diabetes)
मधुमेह चयापचय से सम्बन्धित रोग होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट का चयापचय पूरा नहीं हो पाता है, साथ ही प्रोटीन तथा वसा के चयापचय पर भी प्रभाव पड़ता है। कार्बोहाइड्रेट की अन्तिम यूनिट ग्लूकोज कहलाती है। ग्लूकोज के ऑक्सीकरण द्वारा कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है लेकिन ग्लूकोज की अतिरिक्त मात्रा इन्सुलिन की उपस्थिति में ग्लाइकोजिन में परिवर्तित होकर शरीर के विभिन्न भागों में विशेष रूप से यकृत में एकत्रित हो जाता है जिससे जरूरतर पड़ने पर ग्लाइकोजिन ग्लूकोज में परिवर्तित होकर ऊर्जा प्रदान कर सके। ग्लाइकोजिन शरीर में कार्बोहाइड्रेट का संचित रूप है। इन्सुलिन की कमी से ग्लूकोज ग्लाइकोजिन में परिवर्तित नहीं हो पाता है तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती जाती है। इसे Huper glycemia कहते हैं। जब रक्त में ग्लूकोज की मात्रा 180 मि० ग्रा० प्रति 100 मि० ली० से ज्यादा हो जाती है तो ग्लूकोज मूत्र के द्वारा उत्सर्जित होने लगता है। इस अवस्था को ग्लाइकोसूरिया (Glycosuria) कहते हैं। ग्लूकोज की अधिकता के कारण ऊतकों में ओसमोसिस की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है जिससे जल का भी मूत्र के रूप में ज्यादा उत्सर्जन होता है जिससे रोगी को कई बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ता है। इस अवस्था को पोलीयूरिया कहते हैं। शरीर से जल का अधिक उत्सर्जन होने के कारण रोगी को प्यास भी ज्यादा लगती है, इसे पीलीडिप्सिया कहते हैं। आहार का पूर्ण रूप से उपयोग न होने के कारण व्यक्ति को भूख भी ज्यादा लगने लगती है, इसे पोलीफेजिया कहते हैं।
डायबिटीज या मधुमेह - साधारण शब्दों में जब किसी व्यक्ति के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य से ज्यादा हो जाती है तो उस व्यक्ति को मधुमेह से ग्रसित कहा जाता है।
सामान्यतः व्यक्ति के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा-
80-100 मिली ग्राम प्रति 100 मिली लीटर रक्त होती है।
मधुमेह की अवस्था में-
> 100 मिली ग्राम ग्लूकोज प्रति 100 मिली लीटर रक्त होती है।
जब रक्त में ग्लूकोज की मात्रा 180 मिली ग्राम / 100 मि० ली० से ज्यादा हो जाती है तो ग्लूकोज गुर्दे की कोशिकाओं से छनकर पेशाब में आ जाता है और शरीर से बाहर विसर्जित होने लगता है, जब ग्लूकोज की बहुत ज्यादा मात्रा पेशाब में आने लगती है तो पेशाब गाढ़ा होकर शहद की तरह हो जाता है। इसीलिए इस बीमारी को मधुमेह कहते हैं।
इन्सुलिन पित्ताशय में उपस्थित नलिकाविहीन ग्रन्थि आइसलेट ऑफ लैंगर हैंस की बीटा 'B' कोशिकाओं से सीधा रक्त में स्त्रांवित होता है। जब रक्त में इसकी कमी हो जाती है तो कार्बोहाइड्रेट के चयापचय को प्रभावित करते हुए मधुमेह का रोग उत्पन्न हो जाता है।
मधुमेह के प्रकार
1. छोटी उम्र में पाया जाने वाला मधुमेह
2. प्रौढ़ अवस्था में पाया जाने वाला मधुमेह
1. छोटी उम्र में पाया जाने वाला मधुमेह – यह इन्सुलिन पर निर्भर रहने वाला मधुमेह भी कहलाता है। यह रोग बच्चे के जन्म से लेकर अठारह साल तक के व्यक्तियों में तेजी से उत्पन्न होता है। रोगी को बहुत तेज भूख व प्यास लगती है तथा मरीज बार-बार पेशाब के लिए जाता है। रोगी कमजोर तथा दुबला-पतला हो जाता है।
2. प्रौढ़ अवस्था में पाया जाने वाला मधुमेह – इस प्रकार का मधुमेह चालीस वर्ष से ज्यादा की आयु वाले व्यक्तियों में होता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अधिकांशतः मोटे होते हैं तथा थकान का बहुत ज्यादा अनुभव करते हैं। इस रोग को आहार पर नियन्त्रण रख कर ठीक किया जा सकता है तथा इन्सुलिन का उपयोग आवश्यक नहीं है।
मधुमेह के कारण
1. मोटापा - मोटे व्यक्तियों में यह रोग अधिक पाया जाता है। जो व्यक्ति मीठे खाद्य पदार्थ, आलू, चावल का अधिक सेवन करते हैं, उन व्यक्तियों के रक्त मंे ग्लूकोज की मात्रा अधिक बढ़ जाती है जिससे पित्ताशय अधिक इन्सुलिन को स्रावित करता है। काफी समय तक पित्ताशय के अधिक क्रियाशील होने से आइसलेट ऑफ लैंगरहेंस के कोष तक जाते हैं तथा अन्त में नष्ट हो जाते हैं जिससे इन्सुलिन कम बनने लगता है और मधुमेह का रोग हो जाता है।
2. नालिका विहीन हार्मोन्स-
पिट्यूटरी ग्रन्थि का अग्रभाग — अग्रपियुषिका ग्रन्थि हार्मोन
अधिवृक्क ग्रन्थि — एड्रीनल कोर्टीकल हार्मोन
थायराइड – थाइरोक्सिन हार्मोन।
उपर्युक्त हारमोन्स, इन्सुलिन हार्मोन के कार्य के विपरीत कार्य करते हैं। सामान्यतः इन सभी हार्मोन्स का आपस में सन्तुलन बना रहता है लेकिन जब यह सन्तुलन बिगड़ जाता है तो इन्सुलिन कार्य प्रभावित हो जाता है तथा ग्लूकोज, ग्लाइकोजिन में नहीं बदल पाती है तथा ग्लूकोज की मात्रा रक्त में बढ़ जाती है।
3. आयु तथा लिंग - आयु बढ़ने के साथ-साथ मधूमेह के होने की भी सम्भावना बढ़ती जाती है। यह नवजात शिशु से लेकर किसी भी आयु के व्यक्ति में हो सकती है। स्त्री तथा पुरुष दोनों में इसकी सम्भावना समान होती है।
4. गर्भावस्था – वह स्त्रियाँ जिनमें मधुमेह की सम्भावना ज्यादा होती उनमें गर्भावस्था के समय मधुमेह रोग हो जाता है क्योंकि गर्भावस्था कार्बोहाइड्रेट के चयापचय पर प्रभाव डालती है।
5. वंशानुक्रम - मधुमेह रोग वंशानुक्रम का रोग है। यदि माता या पिता या माता-पिता दोनों मधुमेह से पीड़ित हों तो उनकी सन्तानों में मधुमेह के रोग की आशंका बहुत ज्यादा हो जाती है।
6. अन्य-
(a) मानसिक तनाव व चिन्ता।
(b) शारीरिक तनाव; जैसे चोट तथा फोड़ा फुन्सी।
(c) कुछ दवाइयाँ; जैसे – थायसाइड आदि।
मधुमेह के लक्षण
1. मूत्र द्वारा पानी के अत्यधिक मात्रा शरीर से बाहर निकल जाने के कारण कोशिकाओं में पानी की कमी हो जाती है जिससे निर्जलीकरण की स्थिति पैदा हो जाती है।
2. पोली यूरिया — मूत्र का बार-बार अनावश्यक गति से विसर्जन होना।
3. अगर लम्बे समय तक स्थिति नियन्त्रण में नहीं रहती है तो Electrolyte inbalance हो जाता है।
4. पोलीडिप्सिया – रोगी को अत्यधिक प्यास का लगना। मूत्र द्वारा शरीर से पानी निकलने के कारण रोगी को पानी की कमी हो जाती है जिससे उसे अधिक-से-अधिक प्यास लगने लगती है।
5. घाव के भरने में काफी समय लगता है क्योंकि मधुमेह के रोगी के शरीर में कीटाणुओं को पनपने के लिए अच्छा वातावरण मिल जाता है जिससे कीटाणु तीव्र गति से पैदा होते हैं।
6. कीटोसिस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
7. पोली फेजिया — अत्यधिक भोजन करना। जब शारीरिक सम्पोषण के लिए आहार का उपयोग नहीं हो पाता है, तब तन्तुओं को आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक भोजन की जरूरत पड़ती है।
8. प्रतिरोधक क्षमता में कमी- रोगी के शरीर में संक्रामक रोगों से बचाव करने की शक्ति नहीं होती है जिससे संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा अन्य रोग; जैसे- फोड़ा, फुन्सी, खुजली आदि शुरू हो जाते हैं।
9. ज्यादा समय तक मधुमेह पर नियन्त्रण न रखने से रोगी को उच्च रक्तचाप हो जाता है तथा कैटरेक्ट होने की काफी संभावना होती है। नाड़ी विक्षिप्त हो जाती है।
मधुमेह में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता
1. प्रोटीन मधुमेह के रोगी को प्रोटीन की उतनी ही जरूरत पड़ती है जितनी कि एक स्वस्थ्य व्यक्ति को। इसलिए आहार में रोगी की आवश्यकतानुसार प्रोटीन प्राप्त होनी चाहिए। अत्यधिक मात्रा में प्रोटीन देने से ग्लूकोनियोजिनेसिस द्वारा रोगी के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है, साथ ही नाइट्रोजन पदार्थ भी रक्त में बढ़ जाता है। लेकिन कुछ प्रकार के रोगियों में प्रोटीन अधिक मात्रा में दिया जाता है; जैसे-
• बालकों में।
• जिन रोगियों का भार अत्यधिक कम हो।
• गर्भवती स्त्री तथा दूध पिलाने वाली माता।
अतः मधुमेह के रोगी को 1 ग्राम से 1 - 1.5 ग्राम तक प्रोटीन प्रति किलोग्राम शारीरिक भार के अनुसार चाहिए।
2. कैलोरी - मधुमेह के रोगी के लिए आहार तालिका बनाने से पहले रोगी को दी जाने वाली कैलोरी का जानना बहुत जरूरी है। अलग-अलग वजन के रोगी को तथा अलग-अलग क्रियाशीलता वाले व्यक्ति को दी जाने वाली कैलोरी की मात्रा भी भिन्न-भिन्न होती है। व्यक्ति यह कैलोरी या ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन से प्राप्त करता है। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में इन तीनों पोषक तत्त्वों को घटा-बढ़ाकर कैलोरी की पूर्ति की जाती है, जैसे-मोटे व्यक्ति के आहार में वसा की मात्रा कम दी जाती है तथा प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दी जाती है। एक सामान्य क्रियाशील एवं वजन वाले व्यक्ति को 30 कैलोरी प्रति किलोग्राम शारीरिक भार के बराबर ऊर्जा की जरूरत पड़ती है अर्थात् 60 किलोग्राम व साधारण क्रियाशील वाले व्यक्ति को 1800 कैलोरी ऊर्जा की जरूरत होती है तथा यह कैलोरी निम्न पोषक तत्त्वों से निम्नलिखित अनुपात में प्राप्त की जाती है-
वसा से - 30%,
कार्बोहाइड्रेट से - 50%,
प्रोटीन से - 20%
गरम प्रदेशों की अपेक्षा ठण्डे प्रदेशों में 10% ऊर्जा की ज्यादा जरूरत पड़ती है।
कैलोरी की आवश्यकता (प्रति किलोग्राम भार )
क्रमांक | वजन | क्रियाशीलता | ||
कम | मध्यम | अत्यधिक | ||
1. | मोटे व्यक्ति के लिए (Overweight ) | 20 | 25 |
30 |
2. | कमजोर व्यक्ति (Under 35 weight) | 35 | 40 | 45 |
3. | साधारण वजन वाला व्यक्ति (Standard weight) | 30 | 35 | 40 |
4. | शैया पर लेटे व्यक्ति के लिए - 25 कैलोरी प्रति किलोग्राम भार |
3. खनिज लवण - मधुमेह के रोगी को खनिज लवणों की सामान्य मात्रा की जरूरत पड़ती है। लेकिन मधुमेह के साथ-साथ यदि रोगी उच्च रक्त चाप से पीड़ित है तो उसके आहार में सोडियम की मात्रा कम करनी पड़ती है।
4. वसा — मधुमेह के रोगी के आहार में वसा की कम मात्रा देनी चाहिए, साथ ही अंसतृप्त वसा, जैसे- रिफाइण्ड तेल, मूँगफली का तेल, डालडा घी आदि का प्रयोग करना चाहिए जिससे रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर न बढ़ पाये तथा धमनियों को मोटा होने (ऐथिरो - स्किले रोसिस) से बचाया जा सके। शरीर को आवश्यक कुल ऊर्जा 30% से 40% भाग वसा से प्राप्त करना चाहिए।
5. कार्बोहाइड्रेट - सामान्यतः मधुमेह के रोगी के आहार में कार्बोहाइड्रेट की ज्यादा कमी नहीं की जाती है लेकिन उन रोगियों के आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटायी. जाती है जिनको इनसुलिन देने की जरूरत नहीं होती है। मूत्र में कीटोन की उपस्थिति रोकने के लिए कम से कम 100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट तथा रक्त में ग्लूकोज की सतह सामान्य बनाये रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा 260 ग्राम कार्बोहाइड्रेट व्यक्ति के आहार में उपस्थित होना चाहिए। मोटे व्यक्ति के लिए वसा की मात्रा को घटाकर कार्बोहाइड्रेट की मात्रा 60 प्रतिशत तक बढ़ा दी जाती है।
6. विटामिन्स - विटामिन 'बी' समूह के विभिन्न सत्व कार्बोहाइड्रेट के चयापचय के लिए जरूरी होते हैं। इनकी कमी होने से कोशिकाओं में पायरुबिक एसिड तथा लेक्टिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे नाड़ी ऊतक क्षतिग्रसत होने लगते हैं। नाड़ी तन्त्र की क्षति को रोकने के लिए विटामिन 'बी' समूह अधिक मात्रा में देने चाहिए, साथ ही अन्य विटामिन्स की भी आहार में अधिकता होनी चाहिए।
मधुमेह में आहार
मधुमेह रोग के उपचार में आहार का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। विशेषकर प्रौढ़ अवस्था में मधुमेह के रोग को आहार द्वारा ही नियन्त्रण किया जाता है। आहार में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों को हटा दिया जाता है जिनसे ग्लूकोज शीघ्रता से प्राप्त हो जाता है तथा कुछ खाद्य पदार्थों को अधिक मात्रा में दिया जाता है; जैसे- हरी सब्जियाँ। रोगी के लिए आहार तालिका बनाते समय अग्रलिखित बातों को जानना आवश्यक है-
1. आहार पोषण की दृष्टि से सन्तुलित होना चाहिए। उसमें आवश्यक सभी भोज्य समूह उपस्थित हों।
2. आहार रोग की गम्भीरता पर आधारित होना चाहिए।
3. आहार व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, भोज्य पदार्थों की उपलब्धि तथा धर्म के अनुसार होना चाहिए।
मधुमेह के रोगी को देने योग्य भोज्य पदार्थ
1. फल – अनार, जामुन, सन्तरा, बेर आदि।
2. अनाज — गेहँ व चने का मिश्रित आटा, गेहूँ, जौ, बाजरा।
3. सैकरीन।
4. दालें- चना तथा सभी प्रकार की दालें।
5. मांस- सभी प्रकार का मांस, मछली, मुर्गी, अण्डा आदि।
6. दूध वर्ग - वसारहित दूध, दही, मठा, छैना।
7. सब्जियाँ- सभी प्रकार की पत्ते वाली व बिना पत्ते वाली सब्जियाँ विशेषकर करेला व परमल।
मधुमेह के रोगी के लिए वर्जित भोज्य पदार्थ
1. चावल।
2. शहद, सभी प्रकार की मिठाइयाँ, चीनी, गुड़, गन्ने का रस, सभी प्रकार के पेय पदार्थ (शर्करायुक्त )।
3. पेस्ट्री, केक, चॉकलेट, आइसक्रीम |
4. जिमीकन्द, शकरकन्द, आलू, अरबी, मिश्रीकन्द, चुकन्दर, कमलगट्टा आदि।
5. छुआरा, खुबानी, किशमिश, अंजीर।
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- आहार एवं पोषण की अवधारणा
- भोजन का अर्थ व परिभाषा
- पोषक तत्त्व
- पोषण
- कुपोषण के कारण
- कुपोषण के लक्षण
- उत्तम पोषण व कुपोषण के लक्षणों का तुलनात्मक अन्तर
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- सन्तुलित आहार- सामान्य परिचय
- सन्तुलित आहार के लिए प्रस्तावित दैनिक जरूरत
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- पोषक तत्त्व - सामान्य परिचय
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- कार्बोहाइड्रेट्स - सामान्य परिचय
- 'वसा’- सामान्य परिचय
- प्रोटीन : सामान्य परिचय
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- खनिज तत्त्व
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- 3. घेंघा रोग अवटुग्रंथि (थायरॉइड)
- 4. घुटनों का दर्द
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- 8. परजीवी (पैरासीटिक) कृमि संक्रमण
- 9. निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन)
- 10. ज्वर (बुखार)
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- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- उच्च रक्त चाप (Hypertensoin)
- मोटापा (Obesity)
- कब्ज (Constipation)
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- टाइफॉइड (Typhoid)
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- प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रः प्रशासन एवं सेवाएँ
- सामुदायिक विकास खण्ड
- राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम
- स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
- प्रतिरक्षा प्रणाली बूस्टर खाद्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न